Department of SANSKRIT
संस्कृत विभाग/संस्कृत विषय
पवित्रतम भारतभूमि में देवभूमि के रूप में सुप्रसिद्ध उत्तराखण्ड राज्य प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति एवं संस्कृत के विद्वानों की तपोभूमि एवं कर्मभूमि के लिए जाना जाता है। उत्तराखण्ड राज्य के चम्पावत जिले में माँ वाराही धाम के लिए प्रसिद्ध देवीधुरा नामक पवित्र स्थल में राजकीय आदर्श महाविद्यालय देवीधुरा की स्थापना के साथ ही सन् २०१४ में महाविद्यालय में संस्कृत विभाग प्रारम्भ हुआ। तब से अनुदिन यह विभाग उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। वर्तमान समय में बी०ए० में संस्कृत विषय में २०० से अधिक विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। संस्कृत भाषा सर्वप्राचीन भाषा होते हुए वर्तमान समय में भी अपनी प्रासङ्गिकता बनाए हुए है। वर्तमान समय में संस्कृत के वैश्विक महत्त्व को ध्यान में रखते हुए साथ ही उत्तराखण्ड राज्य की द्वितीय राजभाषा के रूप में अङ्गीकृत संस्कृत का अध्ययन–अध्यापन कार्य महाविद्यालय अनवरत चल रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति–२०२० के द्वारा संस्कृत विषय के पाठ्यक्रम को अधिक प्रभावशाली और उपयोगी बनाया गया है। साथ ही संस्कृत विषय के अध्ययन से रोजगार की विभिन्न सम्भावनाओं को प्रत्येक विद्यार्थी तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है।
अधिगम उपलब्धि
१. साहित्य मानव संवेदना की अभिव्यक्ति का प्रमुख स्त्रोत रहा है। कलाओं में यह सम्पूर्ण कला है। साहित्य समाज का दर्पण है। स्नातक उपाधि में इस विषय के चयन एवं अध्ययन से विद्यार्थी को साहित्य के सांगोपांग महत्त्व का ज्ञान होगा।
२. सहज एवं स्वाभाविक रूप से भाषा–कौशल प्राप्त कर उनमें प्रभावशाली अभिव्यक्ति की क्षमता उत्पन्न होगी।
आत्मविश्वास से युक्त एवं नेतृत्व क्षमता के धारक होंगे।
३. मूल्यपरक व्यक्तित्व से युक्त होकर भारतीयता के बोध के साथ वैश्विक नागरिक के रूप में भावी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होंगे।
४. विद्यार्थी संघ लोक सेवा आयोग एवं प्रादेशिक सेवा आयोगों के परीक्षा पाठ्यक्रम में सम्मिलित संस्कृत साहित्य की आधार एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करेंगे।
५. विद्यार्थियों को लेखन, वाचन एवं अध्ययन की दृष्टि से भाषागत दक्षता प्राप्त होगी।
बी०ए० प्रथम वर्ष हेतु अधिगम उपलब्धि
१. सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा के रूप में संस्कृत भाषा के प्राचीन महत्त्व एवं उसकी वर्तमान प्रासङ्गिकता को जानने– समझने योग्य होंगे।
२. संस्कृत साहित्य के विभिन्न विषयों यथा काव्य, नाटक, चम्पू, दर्शन, धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र, कर्मकाण्ड, व्याकरण इत्यादि से सुपरिचित होकर संस्कृत मर्मज्ञ बन सकेंगे।
३. संस्कृत व्याकरण के विभिन्न अंगों के ज्ञान द्वारा भाषा के शुद्ध अध्ययन, लेखन एवं उच्चारण के माध्यम से अभिव्यक्ति कौशल का विकास होगा।
बी०ए० द्वितीय वर्ष हेतु अधिगम उपलब्धि
१. आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, ज्योतिष, नित्यनैमित्तिक कर्मकांड इत्यादि के माध्यम से जीविकोपार्जन के योग्य बनेंगे।
२. वैदिक एवं लौकिक संस्कृत साहित्य की समृद्धता एवं भारतीय संस्कृति के मूलतत्त्वों को जानकर उत्तम चरित्रवान मानव एवं कुशल नागरिक बनेंगे।
३. समसामयिक समस्याओं के समाधान के रूप में संस्कृत साहित्य में निबद्ध सर्वाङ्गीणता के प्रति शोधपरक दृष्टि का विकास होगा।
बी०ए० तृतीय वर्ष हेतु अधिगम उपलब्धि
१. विद्यार्थी स्नातक उपाधि वर्ष पाठ्यक्रम के अन्तर्गत मुख्य विषय के रूप में काव्यशास्त्र, दर्शन साहित्य का आधारभूत ज्ञान प्राप्त करेंगे।
२. पाठ्यक्रम के अन्तर्गत व्याकरण एवं उपनिषद् का सामान्य परिचय प्राप्त करेंगे।
३. स्नातक उपाधि के पाठ्यक्रम में विद्यार्थी पुराण एवं स्तोत्रकाव्य का ज्ञान प्राप्त करेंगे।
४. विद्यार्थी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वेद एवं वैदिक साहित्य से परिचित होंगे।
४. पाठ्यक्रम के अन्तर्गत स्मृति साहित्य का अध्ययन कर उसके महत्त्व से परिचित होंगे।
५. कौटिलीय अर्थशास्त्र के अध्ययन से विद्यार्थी परिचित होंगे।
Image | NameDetail | Position | Description | Social |
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Dr. Hem ChanderM.A. Sanskrit, Ph.D., NET JRF Teaching Experience: 4 Years |
M.A. Sanskrit, Ph.D., NET JRF Teaching Experience: 4 Years |
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